अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को टैरिफ विवाद का नुकसान उठाना पड़ सकता है, और इसका अंजाम अमेरिकी जनता को भुगतना पड़ सकता है। इस बात का संकेत अमेरिकी संसद की फॉरेन रिलेशन कमेटी ने दिया है, जिसने राष्ट्रपति ट्रंप की भारत पर टैरिफ लगाने की नीति की कड़ी आलोचना की है। खासकर भारत पर 50 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगाने और चीन को टैरिफ से छूट देने को लेकर कमेटी ने ट्रंप की नीतियों पर सवाल उठाए हैं।
फॉरेन रिलेशन कमेटी की चेतावनी
अमेरिकी संसद की फॉरेन रिलेशन कमेटी ने कहा है कि रूस से बड़ी मात्रा में तेल खरीद रहे चीन या अन्य देशों पर प्रतिबंध लगाने की बजाय ट्रंप सरकार ने जानबूझकर भारत को टारगेट किया है। कमेटी ने लिखा है कि यह भारत पर टैरिफ लगाकर केवल अमेरिका के आम नागरिकों को ही नुकसान पहुंचा रहा है, साथ ही अमेरिका-भारत के द्विपक्षीय संबंध भी कमजोर हो रहे हैं। कमेटी ने यह भी संकेत दिया कि ट्रंप की यह नीति अब यूक्रेन विवाद से जुड़ी गंभीर कूटनीति का हिस्सा नहीं लगती बल्कि यह एक भेदभावपूर्ण कार्रवाई है।
रूस से व्यापार के कारण टैरिफ लगाया गया
अमेरिका ने भारत पर पहली बार 1 अगस्त को 25 प्रतिशत टैरिफ लगाया था, लेकिन बाद में इसे बढ़ाकर कुल 50 प्रतिशत कर दिया गया। ट्रंप प्रशासन का कहना है कि भारत रूस से तेल और रक्षा उपकरण खरीद रहा है, जिससे रूस को आर्थिक मदद मिल रही है। रूस इस आर्थिक संसाधन का उपयोग यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में कर रहा है। इसलिए अमेरिका ने सोचा कि भारत पर आर्थिक दबाव डालकर रूस को युद्ध खत्म करने के लिए मजबूर किया जा सकेगा। इसी कारण से भारत पर कड़ी टैरिफ पेनल्टी लगाई गई।
भारत पर भेदभाव के आरोप
टैरिफ लगाने के फैसले पर अमेरिका के अंदर और बाहर भी ट्रंप की आलोचना हो रही है। कई विशेषज्ञों और अधिकारियों का कहना है कि यह कदम भारत के साथ भेदभावपूर्ण है। क्योंकि चीन भी रूस से तेल खरीदता है, लेकिन उसे कोई कड़ा टैरिफ या पाबंदी नहीं मिली है। ऐसे में केवल भारत को निशाना बनाना उचित नहीं है। भारत ने भी इसे अन्यायपूर्ण कदम बताया है और कहा है कि इससे द्विपक्षीय व्यापार वार्ता प्रभावित हुई है। भारत-अमेरिका के रिश्ते कमजोर होने से दोनों देशों को आर्थिक और राजनीतिक नुकसान हो सकता है, जिसका भुगतान अंततः अमेरिकी नागरिकों को करना पड़ सकता है।
भारत की रणनीति: टैरिफ से निपटने की तैयारी
भारत ने 50 प्रतिशत टैरिफ के इस नए झटके का सामना करने के लिए कड़े कदम उठाए हैं। अमेरिकी पोस्टल सर्विस पर निर्भरता को कम कर दिया गया है। इसके अलावा भारत ने ब्रिक्स देशों के साथ व्यापारिक लेन-देन में भारतीय मुद्रा के इस्तेमाल की छूट दे दी है, ताकि विदेशी मुद्रा के दबाव को कम किया जा सके। भारत ने यूरोप और ब्रिक्स देशों के साथ व्यापार बढ़ाने की योजनाएं बनाई हैं और नए निर्यात बाजारों की खोज शुरू कर दी है। “आत्मनिर्भर भारत” और “मेक इन इंडिया” जैसी योजनाओं पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है ताकि घरेलू उत्पादन बढ़े और विदेशी बाजारों पर निर्भरता कम हो।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ कहा है कि भारत किसी भी आर्थिक दबाव के आगे झुकने वाला नहीं है। भारत टैरिफ की चुनौतियों से पूरी तरह निपटने में सक्षम है और यह सुनिश्चित करेगा कि इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर न्यूनतम प्रभाव पड़े।
निष्कर्ष
टैरिफ विवाद ने भारत-अमेरिका संबंधों को एक नए मोड़ पर ला दिया है। अमेरिकी संसद की फॉरेन रिलेशन कमेटी ने ट्रंप की नीतियों की आलोचना करके यह स्पष्ट कर दिया है कि इससे अमेरिकी जनता को भी नुकसान होगा। भारत ने अपनी आर्थिक रणनीति मजबूत कर ली है और अब वह व्यापारिक विविधता की ओर कदम बढ़ा रहा है। ऐसे में यह विवाद जल्द सुलझे या न सुलझे, भारत अपनी आर्थिक सुरक्षा को प्राथमिकता देगा और वैश्विक मंच पर अपने हितों की रक्षा करेगा। ट्रंप प्रशासन को समझना होगा कि टैरिफ के माध्यम से दबाव बनाना हमेशा कारगर रणनीति नहीं होती और इससे दोनों देशों के बीच सहयोग प्रभावित होता है।